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ग़ज़ल
कल जो रुख़ फेर लिया करते थे मुझ से 'अख़्तर'
आज वो भी मिरे हालात पे रो देते हैं
अख़्तर ग्वालियारी
ग़ज़ल
नज़र उठाना इधर न 'अफ़सर' बुरा है ये डॉलरों का चक्कर
उधर उधर हो गई सफ़ाई जिधर जिधर उस ने हाथ फेरा
अफ़सर आज़री
शेर
मोती पिरो के ज़ुल्फ़ में अख़्तर बना दिए
तू ने अँधेरी रात में तारे दिखा दिए